आग की लपटों से आगे छाँव में ले चल कहीं

आग की लपटों से आगे छाँव में ले चल कहीं लील ही जाए न इन रिश्तों का ये जंगल कहीं   आपने ख़ुद ही पुकारा है चिलकती धूप को लोग पहले काटते थे नीम या पीपल कहीं   लाल-पीली हो रही हैं ऑंधियाँ, क्या बात है फूटने को है दरख्तों में कोई कोंपल कहीं   … Continue reading आग की लपटों से आगे छाँव में ले चल कहीं